भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा को पूर्णिमा श्राद्ध के नाम से जाना जाता है| पूर्णिमा के बाद एकादशी, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या श्राद्ध आता है| इन तिथियों में पूर्णिमा श्राद्ध, पंचमी, एकादशी और सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध प्रमुख माना जाता है| शास्त्रों के अनुसार हमारे पूर्वज पूर्णिमा के दिन चले गए हैं उनके पूर्णिमा श्राद्ध ऋषियों को समर्पित होता है| हमारे पूर्वज जिनकी वजह से हमारा गोत्र है| उनके निमित तर्पण करवाएं| अपने दिवंगत की तस्वीर को सामने रखें| उन्हें चन्दन की माला अर्पित करें और सफेद चन्दन का तिलक करें| इस दिन पितरों को खीर अर्पित करें| खीर में इलायची, केसर, शक्कर, शहद मिलाकर बनाएं और गाय के गोबर के उपले में अग्नि प्रज्वलित कर अपने पितरों के निमित तीन पिंड बना कर आहुति दें| इसके पश्चात, कौआ, गाय और कुत्तों के लिए प्रसाद खिलाएं, इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और स्वयं भी भोजन करें |